रेबीज़ की चपेट में : देहरादून व हरिद्वार में दो युवकों की दर्दनाक मौत

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हरिद्वार के कनखल में एक 30 वर्षीय पंडित श्रमाचार्य ने अपनी गाय की मौत का बदला लेने के लिए कुत्ते को मारने गए, लेकिन वह स्वयं उसी कुत्ते के काटने का शिकार हो गए।

उत्तराखंड में हाल ही में कुत्ते द्वारा काटे जाने के बाद रेबीज़ से दो अल्पकालीन घटनाएँ सामने आई हैं—एक देहरादून में और दूसरी हरिद्वार के कंकहल क्षेत्र में—जो मानव जीवन एवं सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिए गंभीर चेतावनी के रूप में उभरी हैं।

1. देहरादून: छह महीनों बाद आया खौफनाक अंत

देहरादून से प्राप्त रिपोर्ट के अनुसार, एक युवक को कुत्ते ने काटा था, जिसके छह महीनों बाद रेबीज़ के लक्षण उभरने लगे। उपचार के दौरान युवक की मौत हो गई, जिससे उसके परिवार और क्षेत्र में अफरा-तफरी मच गई। यह हमला देहरादून की बढ़ती आवारा कुत्तों की समस्या और उचित चिकित्सा नहीं मिलने की गंभीर तस्वीर को उजागर करता है। 

2. हरिद्वार: गाय की मौत का बदला लेने गया युवक भी शिकार

हरिद्वार के कनखल में एक 30 वर्षीय पंडित श्रमाचार्य ने अपनी गाय की मौत का बदला लेने के लिए कुत्ते को मारने गए, लेकिन वह स्वयं उसी कुत्ते के काटने का शिकार हो गए। वे तीन महीने बाद रेबीज़ के लक्षणों के साथ अस्पताल लाए गए, लेकिन इलाज संभव नहीं हो पाया और उनकी मृत्यु हो गई।  इस घटना ने साफ कर दिया कि चेतावनी अनदेखी नहीं करनी चाहिए।

व्यापक परिप्रेक्ष्य: उत्तराखंड में कुत्ते के काटने व रेबीज़ की वास्तविक स्थिति
• पब्लिक हेल्थ डेटा: इस वर्ष अब तक उत्तराखंड में लगभग 18,000 डॉग-बाइट्स दर्ज किए जा चुके हैं। पिछली कुछ वर्षों में ये आंकड़े 20,000 से 25,000 के बीच रहे हैं, यह दिखाता है कि इस समस्या का बढ़ना निरंतर जारी है। 
• एबीसी (Animal Birth Control) कार्यक्रम: राज्य भर में अब तक 90,000 से अधिक कुत्तों को नसबंदी के अधीन लाया गया है, परन्तु कई क्षेत्रों में यह प्रयास अभी अधूरा है। 
• रिपोर्टेड रेबीज़ मृत्यु: पिछले पाँच वर्षों में स्वास्थ्य अधिकारी कोई रेबीज़ से होने वाली मृत्यु दर्ज नहीं कर पाये, और इसका श्रेय समय पर एंटी-रेबीज़ वैक्सीन और जागरूकता को दिया गया है।  हालांकि इन दो हालिया घटनाओं ने इस निष्कर्ष को चुनौती दी है।
• लंबी सचेतना की कमी: ये दुर्भाग्यपूर्ण हादसे इस बात की जड़ तक पहुँचने का संकेत हैं कि समय पर उचित चिकित्सा एवं वैक्सीन उपचार की जानकारी और पहुंच बेहद जरूरी है।

सतर्कता और त्वरित कार्रवाई का समय
1. तत्काल चिकित्सा: कुत्ते के काटने पर उस स्थान को तुरंत साबुन व पानी से कम से कम 15 मिनट तक धोएँ और अगले 24 घंटे के भीतर एंटी-रेबीज़ वैक्सीन (ARV) व आवश्यकता के अनुसार रैबीज़ इम्यून ग्लोबुलिन (RIG) लगवाएँ। 
2.पूरा वैक्सीन कोर्स पूर्ण करें: आरंभिक डोज़ लगने के बाद, निर्धारित सब डो़ज—पाँच-डो़ज ARV या संगत RIG—पूरी तरह लगवाएँ, अधूरा इलाज गंभीर जोखिम पैदा कर सकता है।
3. एबीसी कार्यक्रम को मजबूती दें: आवारा कुत्तों की संख्या नियंत्रण में लाने के लिए नसबंदी अभियान को हर जिले में प्रभावी ढंग से लागू किया जाए।
4. जन जागरूकता बढ़ाएँ: लोगों को पशु काटने की गंभीरता व उपचार के विकल्पों के बारे में जागरूक करना आवश्यक है ताकि वे समय पर कदम उठा सकें

दो दुखद घटनाओं ने स्पष्ट कर दिया है कि रेबीज़ एक जानलेवा—but पूर्णतः टलने योग्य—बिमारी है यदि समय रहते सही उपचार मिले। इन घटनाओं को चेतावनी के रूप में लेते हुए, हमें एहतियात और स्वास्थ्य इंतजाम को तत्काल प्रभाव से मजबूत करना होगा।

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